वैदिक विचार #5

स नः॑ पि॒तेव॑ सू॒नवेऽग्ने॑ सू॒पाय॒नो भ॑व । सच॑स्वा नः स्व॒स्तये॑ ।।

स नः॑ पि॒तेव॑ सू॒नवेऽग्ने॑ सू॒पाय॒नो भ॑व ।
सच॑स्वा नः स्व॒स्तये॑ ।।

ऋ० ११११९
ऋषिः मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः । देवता अग्निः । छन्दः विराह गायत्री ।

संसार में हमारा जिन द्वारा जन्म होता है उन्हें हम पिता कहते हैं; और भी जो वृद्ध पुरुष, गुरु आदि होते हैं वे भी हमारा उत्कृष्ट पालन करनेवाले होने से पिता कहलाते हैं । परन्तु हे प्रभो अग्ने ! हम सभी को कभी-न-कभी अनुभव हो जाता है कि हमारे असली पालक पिता तो तुम्हीं एकमात्र हो । एक समय आता है जब कि सांसारिक पिता भी वैसे ही रोते खड़े रह जाते हैं और हमारी पालना, रक्षा नहीं कर सकते । सचमुच संसार के हम सब वासीसांसारिक पिता व पुत्र सब-के-सब – तेरे एक समान पुत्र हैं । हे हम सब के पिता ! हे परम पिता ! जब हम सब तेरे पुत्र हैं तो हमारी तेरे तक हमेशा पहुँच क्यों नहीं होती है ? पुत्र का तो यह अधिकार है कि वह जब चाहे पिता के पास पहुँच सके । जब इस संसार में और कोई हमारी रक्षा कर सकनेवाला है ही नहीं, हमारा दुखड़ा सुन सकनेवाला है ही नहीं, तो हे पिता ! हम और कहाँ जाएँ ? तू तो हमारे लिए ‘सु उपायन’ रह, सुगमता से पहुँच सकनेवाला हो । हे एकमात्र पिता ! हम जिस समय चाहें, जिस जगह चाहें तुझे मिल सकें—अपना दुःख सुना सकें- अपनी बाल-कामनाएँ पूरी करा सकें। हम बच्चों की तुमसे यही प्रार्थना है, यही याचना है ।
और हमारा कल्याण किसमें है, यह भी हम अबोध बालक क्या जानें ! जो हमें अकल्याण दिखाई देता है वही पीछे पता लगता है कि वह कल्याण था । हे पिता ! तुम्हीं जानते हो कि हम बच्चों का कल्याण किसमें है । बस, तुम्हीं हमारी स्वस्ति के लिए, कल्याण के लिए हमें अपने बच्चों को — सेवित करो, पालो-पोसो | हम तुम्हारे बच्चे हैं ! हम तुम्हारे बच्चे हैं ! !

शब्दार्थ – अग्ने हे प्रभो अग्ने ! सः वह तुम पिता सूनवे इव पिता की तरह मुझ पुत्र के लिए सु उपायनः सुगमता से पहुँचने योग्य भव होओ और स्वस्तये कल्याण के लिए नः हमें सचस्व सेवित करो ।